-->

Breaking News

Rosera बड़ी मैया के विसर्जन में उमड़ा जनसैलाब

ROSERA : कहा जाता है कि परंपराएं गतिशील होती हैं. समय के अंतराल में इनमें परिवर्तन अवश्य आती हैं. किंतु कुछ परम्पराएं ऐसी हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं. इनमें आधुनिकता का कोई समावेश नहीं दिखता. ऐसी ही परंपरा का बखूबी निर्वहन करता आ रहा है रोसड़ा का 'बड़ी मैया पूजा परिवार'. आज भी भक्तों के कंधों पर माता की विदाई और उनका विसर्जन.. 

साल में एक दिन दशहरा का ऐसा आता है जब मेरा पूरा शहर भावविह्वल हो उठता है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु नर-नारी सड़क के दोनों ओर अपने-अपने घरों के सामने और छतों पर हाथ जोड़े खड़े होते हैं. एक बार फिर आज पूरा शहर बड़ी मैया की विदाई में उमड़े जनसैलाब का साक्षी बना. कोई भव्य प्रचार नहीं, कोई बुलाहट नहीं, पर सारे लोग निकल आते हैं विसर्जन जुलूस में शामिल होने... युवक, बूढ़े, बच्चे... बूढ़ी स्त्रियां, घूंघट ओढ़े खड़ी दुल्हनें, बच्चियां...
    
स्त्रियां हाथ में जल अक्षत ले कर खड़ी होती हैं अपने-अपने घरों के आगे । जैसे मैया की डोली का आगमन होता है और मैया के भजन के बोल जैसे ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर गूंजते है भाव-विह्वल हो कर माताएं जयकारा लगाने लगती हैं...
छलछलाई आंखों से निहार रही हैं उस दृश्य को, जो बड़ा ही पावन व सुखद है। 

जो लड़कियां अपने वस्त्रों के कारण हमें संस्कार हीन लगती हैं, वे हाथ जोड़े खड़ी हैं। उदण्ड कहे जाने वाले लड़के उत्साह में हैं, इधर से उधर दौड़ रहे हैं। मैं भी उन्ही के साथ दौड़ रहा होता हूं। इस भीड़ की कोई जाति नहीं है। लोग भूल गए हैं अमीर गरीब का भेद, लोग भूल गए अपनी जाति- गोत्र! उन्हें बस इतना याद है कि आज मां की विदाई है और उनकी डोली को बूढ़ी गंडक तट तक पहुंचाना है । हमें यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है , हम जी लेना चाहते हैं इस पल को... हम पा लेना चाहते हैं यह आनन्द ! 

कोई नेता, कोई संत, कोई विचारधारा इतनी भीड़ इकट्ठा नहीं कर सकती, यह उत्साह पैदा नहीं कर सकती। सबको जोड़ देने की यह शक्ति केवल और केवल धर्म में है, मेरे शहर की आराध्य बड़ी मैया में है.



EDIT- ऋषि सिंह , रोसड़ा 

कोई टिप्पणी नहीं