बिहार के DGP का आदेश: दहेज उत्पीड़न औऱ 7 साल से कम सजा वाले अपराध के मामलों में अभियुक्तों की सीधी गिरफ्तारी ना करें
दरअसल देश में पुलिस को बिना वारंट गिरफ्तारी का जो अधिकार मिला है उसमें साल 2010 में ही संशोधन कर दिया गया था. 2017 में फिर से बिहार पुलिस को ये निर्देश दिया गया था कि वे 7 साल से कम सजा वाले मामले में अभियुक्तों की सीधी गिरफ्तारी न करें.
क्या कहा है डीजीपी ने -
1. दहजे उत्पीडन की धारा 498 (ए) औऱ 7 साल से कम कारावास के मामलों में अभियुक्तों की सीधी गिरफ्तारी न करें. पहले सीआऱपीसी की धारा 41 का अध्ययन कर लें कि गिरफ्तारी जरूरी है या नहीं.
2. ऐसे मामलों में अगर गिरफ्तारी होती है तो पुलिस अभियुक्ती की कोर्ट में पेशी के दौरान ही सारा तथ्य कोर्ट में रखेंगे. संबंधित मजिस्ट्रेट जब पुलिस के कारण से संतुष्ट होंगे तभी उन्हें बंदी बनाने की मंजूरी देंगे.
3. ऐसे किसी मामले में अगर पुलिस ये समझती है कि अभियुक्त की तत्काल गिरफ्तारी जरूरी नहीं है तो वह FIR दर्ज होने के दो सप्ताह के भीतर कोर्ट को ऐसे अभियुक्तों का विवरण भेज देगी. हालांकि अगर जिले के एसपी चाहें तो दो सप्ताह की अवधि को बढा सकते हैं.
4. डीजीपी ने कहा है कि अगर कोई पुलिस पदाधिकारी इस आदेश का पालन नहीं करता है तो उसे विभागीय कार्रवाई के साथ साथ कोर्ट की अवमानना के लिए दंड मिलेगा.
5. हालांकि पुलिस को ऐसे कई मामलों में अभियुक्तों को गिरफ्तार का भी अधिकार मिला है. डीजीपी ने पुलिसकर्मियों को कुछ महत्वपूर्ण बिंदू भेजे हैं. अगर किसी अभियुक्त पर वे लागू होते हैं तो उन्हें हर हाल में गिरफ्तार करना होगा.
6. डीजीपी ने कहा है कि अगर कोई अभियुक्त पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में कोई अपराध करता है तो पुलिस को उसे बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार है. भले ही उसकी सजा कितनी भी कम क्यों न हो.
Source - first Bihar
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